हाई कोर्ट – भारत के न्यायिक ढांचे में महत्वपूर्ण भूमिका

जब हम हाई कोर्ट, भारत के प्रत्येक राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में स्थित उच्च स्तर का न्यायालय, जो अपील और मूलभूत मामलों की सुनवाई करता है. Also known as उच्च न्यायालय, it serves as the bridge between district courts and the Supreme Court.

यह उच्च न्यायालय, वो संस्था जो राज्य‑स्तर के कई हाई कोर्ट की निगरानी करती है और महत्वपूर्ण न्यायिक प्रश्नों को स्पष्ट करती है.

साथ ही सुप्रीम कोर्ट, देश का सबसे उच्च न्यायालय, जो अंत में हाई कोर्ट के फैसले को रिव्यू कर सकता है। इन तीनों संस्थाओं के बीच एक स्पष्ट संबंध है: हाई कोर्ट उच्च न्यायालय के तहत काम करता है, और उच्च न्यायालय के निर्णय सुप्रीम कोर्ट में अपील हो सकते हैं। इस सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि "हाई कोर्ट भारत में राज्य स्तर का उच्चतम न्यायालय है", "उच्च न्यायालय हाई कोर्ट की कार्यवाही सुनता है" और "सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के फैसले को अंतिम रूप देता है"।

हाई कोर्ट की कार्यप्रणाली और वकीलों की भूमिका

जब कोई नागरिक या कंपनी हाई कोर्ट में केस दर्ज कराता है, तो उसे वकील, कानूनी पेशेवर जो मुकदमों में पक्षों की प्रतिनिधि करता है और प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं को पूरा करता है की मदद चाहिए। वकील के बिना अपील दाखिल करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि दस्तावेज़ीकरण, सुनवाई की तैयारी और कोर्ट के निर्देशों का पालन सभी पेशेवर रूप से करना पड़ता है। हाई कोर्ट मुख्यतः दो प्रकार के मामलों को संभालता है: सिविल विवाद (जैसे संपत्ति, उत्तराधिकार) और आपराधिक मामलों में अपील या पुनर्विचार। प्रत्येक मामले की सुनवाई में निर्धारित समय सीमा, प्रमाणों की जांच और अक्सर विस्तृत जज‑वॉची शामिल रहती है। उदाहरण के तौर पर, जब कोई भूमि विवाद हाई कोर्ट तक पहुंचता है, तो वकील जमीनी नक्शा, परिचालन रिकॉर्ड और गवाहियों को प्रस्तुत करता है, और जज इन सबको देख कर अंतिम निर्णय लेता है। इसी तरह, महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों में हाई कोर्ट ने कई बार न्यायिक दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जैसे महिला अधिकार, पर्यावरण संरक्षण और सूचना का अधिकार। इन फैसलों का असर न केवल राज्य‑स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय नीति में भी दिखता है।

हाई कोर्ट में निर्णय सुनाए जाने के बाद, अगर पक्ष dissatisfied है तो वह हाई कोर्ट के आदेश को उच्च न्यायालय या सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है, यह केस की प्रकृति और कोर्ट के निर्देशों पर निर्भर करता है। इस प्रक्रिया को समझना इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे आप अपने अधिकारों को बेहतर ढंग से सुरक्षित कर सकते हैं।

अब आप यहाँ पढ़ेंगे कि हाल ही में हाई कोर्ट में कौन‑से बड़े‑बड़े फैसले आये हैं, किस राज्य में नया नियम लागू हुआ है और किन बदलावों की खबरें अभी तक नहीं पहुँच पाई हैं। इस संग्रह में विभिन्न हाई कोर्ट की ताज़ा खबरें, प्रमुख केस स्टडीज़ और उपयोगी टिप्स शामिल हैं, जो आपके कानूनी ज्ञान को आज़माने में मदद करेंगे। आगे आने वाले लेखों में हाई कोर्ट के प्रमुख मुकदमों की चर्चा, न्यायिक प्रक्रिया के अंदरूनी पहलुओं की जानकारी और वकीलों के लिए आवश्यक रणनीतियों को विस्तार से पढ़ेंगे।

आयकर ऑडिट रिपोर्ट की अंतिम तारीख बढ़ी: CBDT ने अक्टूबर 31 तक की अनुमति दी

आयकर ऑडिट रिपोर्ट की अंतिम तारीख बढ़ी: CBDT ने अक्टूबर 31 तक की अनुमति दी

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केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने राजस्थान और कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेशों के बाद आयकर ऑडिट रिपोर्ट की जमा करने की अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2025 से बढ़ाकर 31 अक्टूबर 2025 कर दी। तकनीकी खामियों, पोर्टल लोडिंग समस्या और नई MSME प्रावधानों के कारण फाइलिंग में दिक्कतें सामने आई थीं। इस फैसले से 40 लाख के अनुमानित ऑडिट रिपोर्टों में से केवल 4 लाख ही जमा हो पाए थे, जिससे अधिकारियों और करदाताओं को राहत मिली। ITR के अंतिम तिथि पर भी कई विशेषज्ञ मतभेद रखते हैं, जबकि CBDT ने ई‑फ़ाइलिंग पोर्टल की स्थिरता को जारा‑जाहिर किया।

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