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अप्रैल 7 2025 - खेल
जब भी नया मंत्री या राष्ट्रपति पद संभालता है तो सबसे पहले शपथ ग्रहण करता है। यह वह पल होता है जहाँ व्यक्ति आधिकारिक तौर पर अपनी जिम्मेदारी स्वीकार कर लेता है और जनता के सामने जवाबदेही जताता है। भारत में शपथ आमतौर पर संविधान द्वारा निर्धारित शब्दों के साथ ली जाती है, जिससे कानूनी रूप से पदधारी को शक्ति मिलती है।
शपथ सिर्फ एक औपचारिकता नहीं है; यह लोकतंत्र की नींव को मजबूत करता है। जब कोई शपथ लेता है, तो वह देश के संविधान, कानून और जनता की सेवा करने की प्रतिज्ञा करता है। इस वजह से मीडिया, नागरिक समाज और विपक्षी पार्टियाँ भी इस कार्यक्रम पर करीब नजर रखती हैं—क्योंकि यहाँ से ही सरकार की दिशा तय होने लगती है।
शपथ के बाद नया अधिकारी तुरंत कार्य शुरू कर सकता है। अगर शपथ नहीं ली जाती तो वह पद अधूरा माना जाता है और कई बार कोर्ट में दायर किए जाने वाले मामले भी उत्पन्न हो सकते हैं। इसलिए हर शपथ को सही समय पर, सही शब्दों में करना ज़रूरी है।
2024‑25 के चुनावों के बाद कई राज्यों और केंद्र सरकार ने बड़े पैमाने पर शपथ ग्रहण कार्यक्रम आयोजित किए। सबसे बड़ी खबर नई दिल्ली की थी, जहाँ प्रधानमंत्री ने अपने काबिल मंत्रियों को एक साथ शपथ दिलाई। इस कार्यक्रम में विदेश से आए प्रमुख राजनयिक भी उपस्थित थे, जिससे भारत का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान बढ़ा।
राज्य स्तर पर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ने अलग‑अलग समय पर शपथ ली। प्रत्येक समारोह में स्थानीय सांस्कृतिक प्रोग्राम, राष्ट्रीय गीत और वाद-विवाद सत्र भी होते हैं, जिससे जनता को अपने नेताओं से जुड़ने का मौका मिलता है।
कुछ बार शपथ ग्रहण में विवाद भी उभरते हैं—जैसे जब किसी राजनेता ने शब्दों को बदलकर कहा या कोई प्रमुख विपक्षी पार्टी इस प्रक्रिया को अस्वीकृत कर देती है। ऐसे मामलों में मीडिया विश्लेषण बहुत बढ़ जाता है और जनता के बीच चर्चा का विषय बन जाता है।
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समाप्ति नहीं, शुरुआत है—शपथ ग्रहण के बाद ही नई नीति और योजनाएं बनती हैं। इसलिए जब आप अगली बार किसी शपथ समारोह को देखें, तो समझें कि यह सिर्फ एक औपचारिकता नहीं बल्कि भारत की लोकतांत्रिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।
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