फिल्म 'इट एंड्स विद अस' की समीक्षा
फिल्म 'इट एंड्स विद अस', जो जस्टिन बाल्डोनी द्वारा निर्देशित है और कोलिन हूवर के बेस्टसेलिंग उपन्यास पर आधारित है, के बारे में बहुत सारी अपेक्षाएं थीं। ब्लेक लाइवली, जिन्होंने लिली ब्लूम की प्रमुख भूमिका निभाई है, के प्रदर्शन को लेकर काफी उत्सुकता थी।
फिल्म की कहानी
कहानी लिली ब्लूम के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक हाउसिंग प्रोजेक्ट में अपनी सामाजिक कार्य की भूमिका में बेहद सक्रिय है। उसके जीवन में घरेलू हिंसा की पृष्ठभूमि है, जिसे वो अपने अंदर दबाए रखती है। कहानी तब बदलती है जब उसकी मुलाकात एटलस (ब्रैंडन स्क्लेनर) नाम के एक बेघर लड़के से होती है और फिर एक धनी न्यूरोसर्जन, रायल (जस्टिन बाल्डोनी) से होती है।
फिल्म के माध्यम से घरेलू हिंसा और यह हरकतें हमारे समाज में कैसे छुपी रहती हैं, इसे उकेरने का प्रयास किया गया है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि फिल्म पूरी तरह से इस पक्ष को दिखाने में असफल रही है।
रूमानी तत्वों की भरमार
फिल्म में रोमांस और सेक्स पर अत्यधिक ध्यान दिया गया है जिससे घरेलू हिंसा की जटिलता और उसके प्रभाव के मुद्दे में कमी आई है। कोलिन हूवर का उपन्यास जहां इन सभी मुद्दों को गहराई से उकेरता है, वहीं फिल्म अक्सर प्रभावहीन और सतही लगती है।
प्रदर्शन और निर्देशन
ब्लेक लाइवली ने लिली की भूमिका में अच्छा काम किया है, लेकिन उनके किरदार की गहराई फिल्म में सही तरह से पेश नहीं की गई है। जस्टिन बाल्डोनी ने रायल के रूप में एक समृद्ध न्यूरोसर्जन की भूमिका निभाई है, लेकिन उनकी और लिली की कहानी में प्रतिस्पर्धा और तनाव की कमी है।
सहायक कलाकार
फिल्म में सहायक पात्र जैसे जेनी स्लेट और हसन मिन्हाज ने अच्छा अभिनय किया है, लेकिन उनकी चरित्रों का विकास अधूरा लगता है। वे केवल कहानी को आगे बढ़ाने के लिए हैं, लेकिन उनके पात्रों को पर्याप्त समय और ध्यान नहीं दिया गया है।
घरेलू हिंसा का मुद्दा
सबसे बड़ा दोष यह है कि फिल्म घरेलू हिंसा के मुद्दे को सही तरीके से नहीं पेश करती है। लिली के अतीत के दर्दनाक अनुभवों को सतही तरीके से दिखाया गया है। फिल्म में इस मुद्दे की जटिलता और गंभीरता को ठीक से नहीं उकेरा गया है जिससे दर्शक इस मुद्दे का वास्तविक स्वरूप समझ नहीं पाते हैं।
निष्कर्ष
अंत में, 'इट एंड्स विद अस' एक निराशाजनक अनुकूलन में बदल जाती है। फिल्म ने मुख्य कथा को सही प्रकार से पेश नहीं किया है और इसने घरेलू हिंसा और महिला सशक्तिकरण के मुद्दे को नज़रअंदाज कर दिया है। लगभग हर अच्छी फिल्म की तरह, इसमें भी कुछ अच्छाइयां हैं, लेकिन कुल मिलाकर यह फिल्म निराशाजनक रहती है।
रेटिंग: 1.5 सितारे
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