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सित॰ 23 2024 - खेल
ईद-उल-अज़हा हर साल मुस्लिम परिवारों को एक साथ लाता है। यह त्यौहार हज़रत इब्राहिम (अली) की कहानी से जुड़ा है, जब उन्होंने अपने बेटे का बलिदान करने के लिए तैयार हो गए थे। अल्लाह ने उनकी निष्ठा देख कर एक बकरी भेजी और यही वजह से आज हम कुर्बानी करते हैं।
तारीख तय होने के बाद लोग दो‑तीन दिन पहले ही साफ‑सफ़ाई शुरू कर देते हैं। घर‑घर में नया कपड़ा निकालते हैं, जूता चमकाते हैं और मिठाइयों का इंतजाम करते हैं। सुबह की नमाज़ के बाद कुर्बान का जानवर तैयार किया जाता है – आमतौर पर बकरी या भेड़। कई लोग इसे खुद ही मारते हैं जबकि कुछ कोपरेशन में दान करते हैं, ताकि जरूरतमंदों को भी खाना मिले।
ईद‑उल-अज़हा के दिन इफ्तार का मेन्यू खास होता है। हलवा, समोसा, कबाब और बकरी की करी सबसे लोकप्रिय हैं। घर में अक्सर दही भल्ले या रोटी के साथ खीर भी बनती है। अगर आप समय बचाना चाहते हैं तो सुपरमार्केट से तैयार करी पैक या फ्रोजन बर्गर ले सकते हैं – कई ब्रांड्स इस मौके पर छूट देते हैं।
बाजारों में कुर्बानी की जुताई के लिए विशेष स्टॉल लगते हैं। यहाँ आप बकरी को साफ‑सफ़ाई, मसाला और धूप में सुखाने जैसी पूरी प्रक्रिया देख सकते हैं। अगर पहली बार है तो विक्रेता से सलाह लेनी चाहिए – कैसे काटें, कब रखे, क्या बचाए रखें आदि।
ईद के बाद कई शहरों में ‘ख़ुशी की मिठाई’ प्रतियोगिताएँ भी होती हैं। लोग अपने हाथ से बनी लड्डू या बर्फी लेकर भाग लेते हैं और जजेस को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। यह एक तरह का सामाजिक खेल बन गया है, जहाँ हर उम्र के लोग हिस्सा ले सकते हैं।
अगर आप यात्रा पर हैं तो ध्यान रखें कि कई एयरपोर्ट्स और रेलवे स्टेशन पर कुर्बान लाने की अनुमति नहीं होती। इसलिए पहले से योजना बना लें – या तो स्थानीय बाजार में खरीदें या ऑनलाइन डिलीवरी का उपयोग करें। इस तरह आपका इफ़्तार बिना झंझट के रहेगा।
अंत में, ईद‑उल-अज़हा सिर्फ खाने‑पीने की बात नहीं है; यह दूसरों को देने और मिलकर खुशियों बाँटने का अवसर है। चाहे आप घर पर हों या बाहर, इस दिन अपने परिवार और दोस्तों को याद दिलाएँ कि दया और एकता सबसे बड़ी खुशी देती है।
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