उत्तर प्रदेश के मत्स्य पालन मंत्री और निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार निषाद ने 2023 के अंतिम महीनों में इटावा के सिचाई विभाग के डाकबंगले में पत्रकारों से बातचीत करते हुए वोटर लिस्ट को पारदर्शी बनाने के लिए एक तेज़ और तकनीकी सुझाव दिया — हर मतदाता की पहचान आधार कार्ड और आंखों की बायोमेट्रिक तकनीक से होनी चाहिए। उन्होंने कहा, 'फर्जी नाम हटाए जाएं, दो वोटर कार्ड रखने वालों का नाम लिस्ट से हटाया जाए, और जो लोग बिना पहचान के वोट डाल रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।' ये बयान न सिर्फ चुनावी प्रक्रिया को लेकर है, बल्कि राजनीतिक रणनीति के एक नए मोड़ को भी दर्शाता है।
वोटर लिस्ट का सच: आधार और आंखों की बायोमेट्रिक पहचान
डॉ. निषाद ने स्पष्ट किया कि वर्तमान वोटर लिस्ट में लाखों अवैध नाम शामिल हैं, जिन्हें आधार कार्ड के साथ जोड़कर ही सच्चाई सामने आ सकती है। उन्होंने आंखों की बायोमेट्रिक तकनीक को अपनाने का सुझाव दिया — वही तकनीक जिसे भारत सरकार ने आधार सिस्टम के साथ जोड़ा है। इससे न सिर्फ डुप्लीकेट वोटर कार्ड की समस्या हल होगी, बल्कि वोटिंग के दौरान धोखाधड़ी की संभावना भी कम होगी। उन्होंने इसे 'न्याय की जरूरत' बताया, न कि केवल तकनीकी सुधार।
बसपा को 'जननेता', सपा पर आरोप
डॉ. निषाद ने बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती को 'जननेता' कहकर सम्मानित किया, जबकि समाजवादी पार्टी पर आरोप लगाया कि उसने अम्बेडकरवादी आंदोलन को कमजोर किया है। 'समाजवादी सरकार ने महापुरुषों के नाम बदले, उनकी विरासत को मिटाया,' उन्होंने कहा। ये बयान उनके राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ एक स्पष्ट चेतावनी है — वे न सिर्फ अपने आप को दलित आंदोलन के वाहक बताते हैं, बल्कि दूसरों को उस विरासत से दूर धकेलने का आरोप भी लगाते हैं।
इटावा कथावाचक विवाद: एक चेतावनी के रूप में
इटावा में हुए कथावाचक विवाद की निंदा करते हुए डॉ. निषाद ने एक गंभीर चेतावनी दी — 'अगर ऐसी घटनाएं जारी रहीं, तो पिछड़े अलग हो जाएंगे, दलित अलग हो जाएंगे, और ऊपरी जातियां अलग हो जाएंगी।' उन्होंने संविधान को एकता का स्तंभ बताते हुए कहा, 'यह तो एक करने के लिए बना था।' ये बयान सिर्फ एक घटना की निंदा नहीं, बल्कि समाज के टूटने के खतरे को दर्शाता है।
राजनीतिक खेल: 2027 के चुनाव की तैयारी
2027 के विधानसभा चुनावों के संदर्भ में डॉ. निषाद ने कहा कि 'राजनीतिक फैसले समय और परिस्थितियों के अनुसार लिए जाते हैं।' उन्होंने मायावती के एनडीए में शामिल होने के सवाल पर इस तरह से जवाब दिया कि यह एक 'खेल' है — जिसका मतलब है कि वे किसी भी संभावना को नहीं बंद कर रहे। उन्होंने अपने चुनावी नारे के रूप में 'PDA बनाम कटेंगे तो बंटेंगे' का उल्लेख किया — एक ऐसा नारा जो समाज के टुकड़ों को एक साथ लाने की बजाय उन्हें बांटने की भावना जगाता है।
योजनाओं का लाभ: पात्रों तक पहुंचना जरूरी
मत्स्य पालन योजनाओं की समीक्षा करते हुए उन्होंने जिला प्रशासन को सख्त निर्देश दिए — 'लाभ केवल पात्र व्यक्तियों को ही मिले।' उन्होंने सपा पर हमला बरसाते हुए कहा, 'सपा का नाम यादव पार्टी रख लो' — एक ऐसा बयान जो उनके लिए समाजवादी पार्टी को एक समुदायवादी दल बनाने का आरोप लगाता है। ये बयान उनके लिए न सिर्फ एक आलोचना है, बल्कि अपने आप को 'काशीराम मिशन' का हिस्सा बताने का भी एक तरीका है।
क्या ये सुझाव व्यावहारिक हैं?
आधार कार्ड से वोटर लिस्ट जोड़ने का विचार पहले भी आया था — 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद चुनाव आयोग ने इसकी संभावना पर विचार किया था। लेकिन डेटा प्राइवेसी और तकनीकी चुनौतियों के कारण इसे अंतिम रूप नहीं दिया गया। डॉ. निषाद का दावा है कि आंखों की बायोमेट्रिक पहचान अब इतनी सस्ती और उपलब्ध है कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसके लिए सरकार को लाखों करोड़ का निवेश करना होगा, और यह न केवल तकनीकी, बल्कि राजनीतिक चुनौती भी है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
आधार कार्ड से वोटर लिस्ट जोड़ने की आवश्यकता क्यों है?
आधार कार्ड भारत का सबसे विश्वसनीय डिजिटल पहचान प्रमाण है, जिसमें बायोमेट्रिक डेटा शामिल है। इसे वोटर लिस्ट से जोड़ने से फर्जी नाम, डुप्लीकेट वोटर कार्ड और अन्य धोखाधड़ी की संभावना कम होगी। उदाहरण के लिए, 2022 के एक अध्ययन में पाया गया कि उत्तर प्रदेश में लगभग 1.2 करोड़ वोटर नाम अवैध थे।
आंखों की बायोमेट्रिक पहचान कैसे काम करेगी?
आंखों की बायोमेट्रिक तकनीक, यानी आईरिस स्कैन, हर व्यक्ति की आंख के अनूठे पैटर्न को पहचानती है। इसे वोटिंग मशीन के साथ जोड़कर यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि कोई व्यक्ति एक से अधिक बार वोट न डाले। भारत में इस तकनीक का उपयोग पहले भी राज्यों जैसे तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में नागरिक सेवाओं के लिए किया जा चुका है।
डॉ. निषाद का सपा और मायावती के साथ राजनीतिक संबंध क्या है?
डॉ. निषाद निषाद पार्टी के नेता हैं, जो दलित और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करती है। वे मायावती को अम्बेडकरवादी आंदोलन की वाहिनी मानते हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी को यादव समुदाय के हितों के लिए अलग करने वाली बताते हैं। यह एक स्पष्ट रणनीति है — अपने आप को दलित नेतृत्व का सच्चा वारिस बनाना।
इटावा कथावाचक विवाद क्या है और इसका राजनीतिक प्रभाव क्या है?
इटावा में एक कथावाचक ने रामायण के बारे में विवादास्पद बयान दिए, जिससे सामुदायिक तनाव बढ़ा। डॉ. निषाद ने इसे निंदित किया, क्योंकि ऐसी घटनाएं जाति और धर्म के आधार पर समाज को बांटती हैं। इसका राजनीतिक प्रभाव यह है कि विपक्षी दलों को अपने आप को 'साम्प्रदायिक शांति' के संरक्षक बनाने का मौका मिलता है।
2027 के चुनाव में निषाद पार्टी की रणनीति क्या है?
निषाद पार्टी अपने आप को 'PDA' (पिछड़ा, दलित, अनुसूचित जाति) का प्रतिनिधि बताती है। उनका नारा 'कटेंगे तो बंटेंगे' इस बात को दर्शाता है कि अगर दलित और पिछड़े वर्ग अलग रहे तो वे हारेंगे। यह एक चुनावी रणनीति है — एकता के नाम पर अलगाव को बढ़ावा देना।
क्या ये सुझाव चुनाव आयोग द्वारा लागू किए जा सकते हैं?
चुनाव आयोग ने आधार कार्ड से वोटर लिस्ट जोड़ने की संभावना पर विचार किया है, लेकिन डेटा सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रता के मुद्दों के कारण इसे अभी लागू नहीं किया गया। डॉ. निषाद का सुझाव अभी राजनीतिक बयानबाजी है — इसे लागू करने के लिए संसदीय विधेयक और विशाल तकनीकी बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होगी।
Sita De savona - 4 नवंबर 2025
आधार से वोटर लिस्ट जोड़ने का विचार तो बहुत अच्छा है लेकिन जब तक डेटा चोरी नहीं रुकेगा तब तक ये सिर्फ एक नारा होगा। किसी की आंख का स्कैन करके वोट देने का मतलब है कि तुम उसकी जिंदगी का डेटा भी रख रहे हो।
GITA Grupo de Investigação do Treinamento Psicofísico do Atuante - 4 नवंबर 2025
महोदय, वोटर लिस्ट की पारदर्शिता के लिए बायोमेट्रिक पहचान के आधार पर व्यवस्था करना एक अत्यंत उचित एवं न्यायसंगत उपाय है, जिसका अनुसरण विश्व के अनेक विकसित राष्ट्रों द्वारा पहले ही किया जा चुका है।
Nithya ramani - 5 नवंबर 2025
ये सब बातें तो अच्छी हैं लेकिन अगर गांव में इंटरनेट नहीं है तो आंख का स्कैन कैसे होगा? पहले बिजली और इंटरनेट दो।
anil kumar - 6 नवंबर 2025
हम सब यहां एक अज्ञात शक्ति के आगे झुक रहे हैं - डिजिटल पहचान। लेकिन क्या हमने कभी सोचा कि जब तक हम अपने आप को एक डेटा पॉइंट नहीं समझेंगे, तब तक हमारी आजादी भी एक एल्गोरिदम का शिकार रहेगी? आधार नहीं, आत्म-पहचान चाहिए।
Srujana Oruganti - 7 नवंबर 2025
फिर से ये बातें? इतने सालों से यही बातें हो रही हैं। लोग वोट देते हैं, बस। बायोमेट्रिक? अरे भाई, जब तक राजनेता अपनी जेब भर नहीं लेते, तब तक ये सब नाटक है।
Pranav s - 8 नवंबर 2025
आधार लगao yaar, sab kuchh theek ho jayega. ye sab bhaiyo ki baatein hai jo sirf vote ke liye baat kar rahe hain. real solution yahi hai.
Ali Zeeshan Javed - 9 नवंबर 2025
हम सब अलग-अलग हैं - जाति, धर्म, भाषा। लेकिन एक चीज जो हम सबको जोड़ती है, वो है हमारी आंखें। अगर आंख के स्कैन से एकता बन सकती है, तो ये सिर्फ तकनीक नहीं, ये एक आध्यात्मिक वादा है।
Žééshañ Khan - 11 नवंबर 2025
इस तरह के उपायों को लागू करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी ढांचे की आवश्यकता है, जिसका अभी तक कोई विचार नहीं हुआ है। यह केवल राजनीतिक शोर है, न कि व्यवहारिक योजना।
ritesh srivastav - 11 नवंबर 2025
आधार कार्ड तो अब बहुत सारे लोगों के लिए एक बर्बरता है। इसे वोटर लिस्ट से जोड़ना भारत को चीन बनाने का रास्ता है। यह एक अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र है।
sumit dhamija - 12 नवंबर 2025
वोटर लिस्ट की सुधार की बात हो रही है, लेकिन जिन लोगों के नाम लिस्ट में नहीं हैं - वे किसकी आवाज़ हैं? तकनीक तो अच्छी है, लेकिन उससे पहले नागरिकता का अधिकार किसके लिए है? ये सवाल तो कोई नहीं पूछता।
Aditya Ingale - 13 नवंबर 2025
दोस्तों, ये बायोमेट्रिक वोटिंग तो बहुत बड़ा बदलाव है - जैसे जब पहली बार ट्रैक्टर आया था और लोगों ने कहा था 'ये जादू है'। अब जब आंखें वोट करेंगी, तो लोगों को लगेगा कि भगवान खुद चुनाव लड़ रहे हैं।