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जुल॰ 13 2024 - राजनीति
अगर आप हिंदू कैलेंडर देखते हैं तो अक्सर "एकादशी" शब्द दिखता है। इस बार हम बात करेंगे आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी की। यह दिन साल में दो‑तीन बार आता है, पर हर बार इसका अपना विशेष प्रभाव होता है। चलिए जानते हैं कब पड़ती है और क्या करना चाहिए।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी आमतौर पर जुलाई‑अगस्त में आती है। 2025 में यह 21 जुलाई को मनाई जाएगी, लेकिन सटीक तिथि स्थानीय चंद्र कैलेंडर के अनुसार थोड़ा बदल सकती है। आप अपने शहर की पैंजिका या भरोसेमंद वेबसाइट से सही दिन‑समय देख सकते हैं।
हिंदू मान्यताओं में एकादशी को विषहरण और आत्मा शुद्धि का दिन माना जाता है। इस दिन व्रत रखने से शरीर के ‘आमाशय’ को आराम मिलता है, मन शांत रहता है और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है। कई पुराणों में बताया गया है कि भगवान विष्णु ने ही इस दिन अपना वरदान दिया था, इसलिए इसे खास पूजा‑पाठ का समय माना जाता है।
एकादशी व्रत के दौरान फल, दूध या शुद्ध पानी से अधिक कुछ नहीं खाना चाहिए। अगर आप कामकाज में व्यस्त हैं तो हल्का फल‑साबुत अनाज वाला नाश्ता रख सकते हैं, जिससे शरीर को पोषण भी मिल जाता है और व्रत की पवित्रता बनी रहती है।
सबसे पहले साफ‑सुथरा स्थान चुनें और उस पर भगवान विष्णु या उनके अवतार (जैसे शेषनाग) की तस्वीर/मूर्ति रखें। धूप, दीपक और अगरबत्ती जलाएँ। फिर हल्का कुमकुम, चंदन पेस्ट और हवन कुंड में कुछ घी डालकर अभिषेक करें।
अब 108 बार “ॐ नमो विष्णवे” या “हरि हरि रामा” का जप करें। यदि आप चाहें तो वैष्णव मंत्र या श्लोक भी पढ़ सकते हैं, जैसे शंकराचर्य के "श्रीवैष्णवसंहिता" से कोई दोहा। यह प्रक्रिया लगभग 15‑20 मिनट में पूरी होनी चाहिए, जिससे समय बचता है और फोकस बना रहता है।
जाप समाप्त होने पर प्रसाद में फल (सेब या पपीता), घी की रोटी और शुगर‑फ़्री मिठाई रखें। इसे परिवार के साथ बाँटें; साझा करने से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और घर में सौहार्द बनता है।
शारीरिक तौर पर एकादशी व्रत पाचन तंत्र को हल्का करता है, जिससे कब्ज़ या गैस जैसी समस्याएँ कम होती हैं। मानसिक रूप से यह तनाव घटाता है क्योंकि ध्यान और जप मन को स्थिर रखते हैं। नियमित रूप से इस दिन का पालन करने वाले लोग अक्सर ऊर्जा में वृद्धि महसूस करते हैं।
ध्यान दें: अगर आप गर्भवती, बीमार या किसी विशेष दवा पर हैं तो डॉक्टर की सलाह ले कर ही व्रत रखें। स्वास्थ्य सबसे पहले आता है, इसलिए अपने शरीर की सुनें और जरूरत के अनुसार बदलाव करें।
आषाढ़ एकादशी का नाम अक्सर "देवशयनी" या "कुजाकरती" के साथ जोड़ा जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु ने अपने सृष्टि को फिर से जाग्रत किया माना जाता है। कुछ लोग इस अवसर पर दान‑परोपकार भी करते हैं; गरीबों को भोजन देना और कपड़े बांटना अतिरिक्त पुण्य लाता है।
अंत में, एकादशी का मुख्य उद्देश्य आत्म-निरीक्षण और शुद्धिकरण है। चाहे आप पूरी तरह व्रत रखें या हल्का उपवास, इस दिन की शांति और सादगी आपके दैनिक जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकती है। तो तैयार हैं? अपने कैलेंडर में निशान लगाएँ और आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी को बेहतरीन तरीके से मनाएँ।
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