फिल्म 'गम गम गणेशा' की कहानी
आनंद देवरकोंडा की नई तेलुगु फिल्म 'गम गम गणेशा' ने बॉक्स ऑफिस पर मिश्रित प्रतिक्रियाओं को प्राप्त किया है। यह फिल्म गणेशा की कहानी पर आधारित है, जो एक छोटे-मोटे चोर के रूप में दिखाया गया है। वह एक कीमती हीरा चुराता है और उसे एक गणेश की मूर्ति में छिपा देता है, जिसे बाद में राजा वरू पल्लि नामक गांव ले जाया जाता है। इस हीरे की कीमत 100 करोड़ रुपये है और उसे हासिल करने के लिए एक गिरोह और एक राजनेता किशोर रेड्डी भी लगे हुए हैं। किशोर रेड्डी इस हीरे का उपयोग चुनाव जीतने के लिए करना चाहता है।
फिल्म की कहानी कई ट्विस्ट और टर्न से भरी हुई है। गनेशा और उसकी टोली इस हीरे और किशोर रेड्डी व उसके आदमियों से कैसे बचते हैं, यह कहानी का मुख्य केंद्र बिंदु है।
आनंद देवरकोंडा की अदाकारी और निर्देशन की समीक्षा
फिल्म में आनंद देवरकोंडा के प्रदर्शन की काफी सराहना की गई है। उनकी अदाकारी ने दर्शकों को बांधे रखा और खासकर फिल्म की पहली छमाही में उनकी ऊर्जा और उत्साह स्पष्ट था। हालांकि, फिल्म की दूसरी छमाही ने कुछ दर्शकों को निराश किया। कहानी की गति धीमी हो जाती है और यह पूर्वानुमानित हो जाती है, जिससे रोमांच की कमी महसूस होती है।
फिल्म के निर्देशक उदया ने हालांकि किरदारों को अच्छे से स्थापित किया है, लेकिन कहानी का व्यक्तिगत फॉर्मेट इसे कमजोर बनाता है। खासकर मोड़ और समयबद्धता के मामले में यह एक पारंपरिक ढांचे का अनुसरण करती है। दर्शकों को कुछ नया और रोमांचक देखने की उम्मीद थी, जो पूरी तरह से नहीं मिला।
फिल्म के अन्य प्रमुख पहलू
फिल्म के अन्य तकनीकी पक्षों को देखा जाए तो छायांकन और संपादन का अच्छा काम किया गया है। फिल्म के गाने और संगीत भी ठीक-ठाक हैं और उन्होंने कहानी के साथ मेल खाते हुए दर्शकों को प्रभावित किया है।
हालांकि, कहानी में इस प्रकार के नाटकीय ट्विस्ट और हाई-ऑक्टेन एक्शन सीक्वेंसेस की कमी दर्शकों को निराश कर सकती है। फिल्म का हास्य पहलू काफी रोचक था, और कुछ सीन तो वाकई में दर्शकों का ध्यान खींचने में सफल रहे।
फिल्म की कुल समीक्षा
'गम गम गणेशा' एक मनोरंजक फिल्म है, लेकिन यह अपनी कमजोरियों के कारण पूरी तरह से सराहनीय नहीं बन पाई। आनंद देवरकोंडा की अदाकारी, पहले भाग की रोमांचक कहानी और निर्देशक द्वारा किरदारों कीठीक से स्थापना फिल्म के प्रमुख सकारात्मक पहलू हैं। दूसरी ओर, कहानी के पूर्वानुमानित हो जाने और गति की कमी मुख्य नकारात्मक बिंदु हैं। फिल्म देखने लायक है, खासकर तेलुगु सिनेमा के प्रशंसकों के लिए।
pk McVicker - 2 जून 2024
आनंद का परफॉर्मेंस बढ़िया था बाकी सब बोरिंग।
फिल्म देखकर लगा जैसे टीवी पर रिपीट हो रहा है।
Laura Balparamar - 2 जून 2024
मुझे लगता है फिल्म का पहला हाफ बहुत ज्यादा जीवंत था, लेकिन दूसरा हाफ बिल्कुल गिर गया।
आनंद की एनर्जी ने मुझे बचा लिया, वरना मैं बीच में ही बंद कर देती।
Shivam Singh - 3 जून 2024
कहानी तो बहुत पुरानी लगी... लेकिन आनंद का डायलॉग डिलीवरी तो बहुत अच्छा था...
क्या ये फिल्म बस उसके लिए बनाई गई थी?
Piyush Raina - 3 जून 2024
ये फिल्म तेलुगु सिनेमा के ट्रैडिशनल स्टोरीटेलिंग का एक अच्छा उदाहरण है।
हालांकि नए तत्वों की कमी थी, लेकिन इसमें रोजमर्रा के लोगों की भावनाएं अच्छी तरह समझी गई हैं।
गांव का माहौल, चोर की जिंदगी, राजनेता का लालच - सब कुछ बहुत सादगी से दिखाया गया है।
ये फिल्म बस एक बड़ी एक्शन फिल्म नहीं, बल्कि एक छोटे से इंसान की जिंदगी की कहानी है।
हास्य के सीन वाकई बहुत अच्छे थे, जिनमें लोगों के असली रिएक्शन झलक रहे थे।
मैंने इसे देखकर अपने बचपन की यादें ताजा कर लीं - जब गांव में बड़े-बड़े लोगों के बीच छोटे लोग भी अपनी जगह बनाते थे।
मूर्ति में छिपा हीरा - ये तो भारतीय लोककथाओं का एक पुराना रूप है।
निर्देशक ने इसे आधुनिक तरीके से नहीं बदला, बल्कि उसे सम्मान दिया।
कहानी की गति धीमी होना जरूरी था, ताकि दर्शक चरित्रों से जुड़ सकें।
हम आजकल सब कुछ जल्दी चाहते हैं, लेकिन असली कहानी धीरे-धीरे बनती है।
इस फिल्म ने मुझे याद दिलाया कि सिनेमा का मकसद सिर्फ एक्शन नहीं, बल्कि भावनाएं जगाना है।
अगर आप तेलुगु फिल्मों को अच्छे से देखते हैं, तो ये फिल्म आपके लिए है।
Srinath Mittapelli - 5 जून 2024
मैंने फिल्म देखी और सोचा ये आनंद का बेस्ट वर्क है
लेकिन दूसरा हाफ बहुत धीमा था
क्या निर्देशक ने बस एक्शन वाला सीन बनाना भूल गए?
किशोर रेड्डी का किरदार भी बहुत फ्लैट था
अगर वो थोड़ा ज्यादा डार्क होता तो फिल्म बहुत ज्यादा अच्छी हो जाती
गाने ठीक थे लेकिन एक भी गाना चार्ट में नहीं गया
मुझे लगता है फिल्म को थोड़ा काटकर 100 मिनट में लाया जा सकता था
Vineet Tripathi - 5 जून 2024
मैं तो बस आनंद के लिए गया था, और वो मुझे बचा गया।
बाकी सब तो बहुत आम बातें हैं।
फिल्म देखने के बाद मैं घर गया और उसका एक सीन दोबारा देख लिया।
Dipak Moryani - 7 जून 2024
क्या किशोर रेड्डी का किरदार थोड़ा ज्यादा एक्सगैजरेटेड था? क्या वो असली राजनेता की तरह लग रहा था?
Subham Dubey - 7 जून 2024
ये फिल्म एक बड़ी साजिश है।
हीरा जो मूर्ति में छिपा है, वो असल में राष्ट्रीय राजधानी के लिए एक राज छिपाए रखने का इशारा है।
गणेशा की मूर्ति ने इसे गांव में छिपाया क्योंकि वो जानता था कि सत्ता इसे ले लेगी।
किशोर रेड्डी एक निजी संगठन का एजेंट है जो चुनाव जीतने के लिए लोगों के विश्वास को बेच रहा है।
आनंद देवरकोंडा वास्तव में एक गुप्तचर है जिसे इस योजना को रोकना है।
फिल्म के अंत में जब वो हीरा नहीं लेता - ये एक संकेत है कि वो जानता है कि असली शक्ति सिर्फ एक हीरे में नहीं, बल्कि लोगों के दिलों में है।
ये फिल्म एक सांस्कृतिक विरासत को बचाने की कोशिश है।
मैं ये बात फिल्म के शुरुआती 10 मिनट में ही देख लिया था।
Rajeev Ramesh - 9 जून 2024
फिल्म के निर्माण के दौरान अधिकारियों द्वारा निर्देशक को दबाव डाला गया होगा।
कहानी के दूसरे हिस्से में धीमापन जानबूझकर डाला गया था ताकि फिल्म का बजट कम रहे।
इसका उद्देश्य असल में फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर धीरे-धीरे चलाना था।
आनंद देवरकोंडा के प्रदर्शन को अतिरिक्त प्रचार के लिए उपयोग किया गया।
यह एक बाजार योजना है, न कि कला।
Vijay Kumar - 9 जून 2024
जब तक तुम चोर को नहीं बनाओगे, तब तक तुम असली इंसान नहीं बन पाओगे।
हीरा तो बस एक चीज है, लेकिन उसकी खोज तुम्हारे अंदर की खोज है।
गणेशा ने जो किया, वो कोई चोरी नहीं, बल्कि एक अस्तित्व का दावा था।
Abhishek Rathore - 10 जून 2024
मैंने फिल्म को दो बार देखा।
पहली बार तो मुझे लगा कि ये बोरिंग है।
दूसरी बार जब मैंने ध्यान से देखा - तो आनंद के चेहरे के अभिनय में एक गहराई थी जो पहले नहीं दिखी थी।
शायद फिल्म ने मुझे बदल दिया।
Rupesh Sharma - 12 जून 2024
अगर तुम एक आम इंसान हो तो ये फिल्म तुम्हारे लिए है।
आनंद का किरदार तुम्हारा बहुत करीब है - थोड़ा शरारती, थोड़ा डरपोक, लेकिन दिल से अच्छा।
हीरा चुराना तो बहुत आम बात है, लेकिन जब तुम उसे बचाने के लिए खड़े हो जाते हो - तब तुम असली हीरो बन जाते हो।
फिल्म ने मुझे ये सिखाया।
Jaya Bras - 14 जून 2024
आनंद का अभिनय तो बहुत अच्छा था...
लेकिन बाकी सब बेकार था...
क्या ये फिल्म बस उसके लिए बनाई गई थी या बस उसे बाहर निकालने के लिए?
Arun Sharma - 15 जून 2024
इस फिल्म के निर्माण में लगे वित्तीय संसाधनों का विश्लेषण करना आवश्यक है।
प्रोडक्शन वैल्यू की तुलना बॉक्स ऑफिस रिवेन्यू से करनी चाहिए।
आनंद देवरकोंडा के वेतन का अनुपात फिल्म के कुल बजट के साथ अनुकूलित नहीं है।
कहानी के दूसरे भाग में गति में आया गिरावट उत्पादन के टाइम मैनेजमेंट की विफलता का परिणाम है।
निर्देशक ने अपनी विजुअल नैरेटिव स्ट्रैटेजी को संतुलित नहीं किया।
यह फिल्म एक आर्थिक और कलात्मक असफलता है।