सीमा विस्तार के बारे में गहराई से जानें

जब हम सीमा विस्तार, राष्ट्र की सीमाओं के विस्तार या पुनर्समीकरण को दर्शाता है, भी कहा जाता है बॉर्डर एक्सपैंशन, तो यह सिर्फ मानचित्र पर रेखा नहीं, बल्कि कई स्तरों की रणनीतिक बातें होती हैं। यह प्रक्रिया भौगोलिक सीमा, भौतिक भू-भाग पर स्थापित सीमा रेखा और आर्थिक सीमा, वाणिज्य, संसाधन और कराधान के हिसाब से निर्धारित क्षेत्र को मिलाकर बनती है। अक्सर सुरक्षा नीति, देश की रक्षा और रणनीतिक सुरक्षा के उपाय द्वारा दिशा तय की जाती है, जबकि अंतरराष्ट्रीय समझौता, दूसरे देशों के साथ कानूनी और राजनयिक समझौते इसका कानूनी फ्रेमवर्क बनाते हैं।

सीमा विस्तार का पहला मुख्य सिद्धांत है: "सीमा विस्तार समावेशी विकास को सक्षम बनाता है"। यह त्रिपक्षीय संबंध (सीमा विस्तार – भू‑राजनीति – आर्थिक लाभ) का एक स्पष्ट उदाहरण है। दूसरा सिद्धांत यह दर्शाता है कि "भौगोलिक सीमा का परिवर्तन अक्सर आर्थिक सीमा के पुनर्मूल्यांकन की मांग करता है"। इस तरह की कड़ी ने कई बार भारत‑चीन और भारत‑नेपाल के सीमावादी समझौतों में दिखा है। तीसरा प्रमुख संबंध यह है कि "सुरक्षा नीति सीमा विस्तार के विकल्पों को सीमित या विस्तारित कर सकती है" – सुरक्षा की जरूरतें कभी‑कभी नई भूमि या जल क्षेत्र की मांग करती हैं। इन सभी संबंधों को समझना पढ़ने वाले को यह बताता है कि किन पहलुओं पर आगे के लेख फोकस करेंगे।

अब बात करते हैं उन क्षेत्रों की जहाँ सीमा विस्तार का प्रत्यक्ष असर दिखता है। भौगोलिक सीमा में नए पहाड़ी क्षेत्रों का अधिग्रहण, नदी के किनारों का पुनर्निर्धारण, या समुद्री सीमाओं का विस्तार भारत के समुद्री व्यापार को सीधे प्रभावित करता है। आर्थिक सीमा में विशेष रूप से मुक्त व्यापार क्षेत्रों (FTZ), विशेष आर्थिक zones (SEZ) और संसाधन‑समृद्ध क्षेत्रों का समावेश होता है, जो स्थानीय रोजगार और राष्ट्रीय GDP को बढ़ाते हैं। सुरक्षा नीति में सीमा रक्षी बलों की पुनर्संरचना, ड्रोन निगरानी और साइबर‑सुरक्षा उपाय शामिल होते हैं, जो नई या विस्तारित सीमाओं को सुरक्षित बनाते हैं। अंत में, अंतरराष्ट्रीय समझौते में दो‑तरफा या बहु‑तरफा संधियों की पुनः बातचीत, सीमा विवादों का हल और जल‑संसाधन साझेदारी जैसे पहलू शामिल होते हैं।

आपको आगे क्या मिलेगा?

नीचे दिए गए लेखों में हम सीमा विस्तार के विभिन्न आयामों को एक‑एक करके तोड़‑मरोड़ कर देखते हैं – चाहे वो भारत‑पाकिस्तान महिला क्रिकेट का नो‑हैंडशेक नीति हो, या नई जल‑संकट की तैयारी के लिए मौसम विज्ञान का अद्यतन डेटा। प्रत्येक लेख में हम दिखाते हैं कि कैसे भौगोलिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंधी विचार मिलकर राष्ट्रीय रणनीति को आकार देते हैं और किस तरह अंतरराष्ट्रीय समझौते इन दिशा‑निर्देशों को कानूनी रूप देते हैं। यह संग्रह आपको सीमा विस्तार के व्यापक परिप्रेक्ष्य से परिचित कराएगा और आगे के विश्लेषण में मदद करेगा।

आयकर ऑडिट रिपोर्ट की अंतिम तारीख बढ़ी: CBDT ने अक्टूबर 31 तक की अनुमति दी

आयकर ऑडिट रिपोर्ट की अंतिम तारीख बढ़ी: CBDT ने अक्टूबर 31 तक की अनुमति दी

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केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने राजस्थान और कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेशों के बाद आयकर ऑडिट रिपोर्ट की जमा करने की अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2025 से बढ़ाकर 31 अक्टूबर 2025 कर दी। तकनीकी खामियों, पोर्टल लोडिंग समस्या और नई MSME प्रावधानों के कारण फाइलिंग में दिक्कतें सामने आई थीं। इस फैसले से 40 लाख के अनुमानित ऑडिट रिपोर्टों में से केवल 4 लाख ही जमा हो पाए थे, जिससे अधिकारियों और करदाताओं को राहत मिली। ITR के अंतिम तिथि पर भी कई विशेषज्ञ मतभेद रखते हैं, जबकि CBDT ने ई‑फ़ाइलिंग पोर्टल की स्थिरता को जारा‑जाहिर किया।

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