यूजेनियो सैंटाना फ्रेंको: एक प्रेरणादायक यात्रा
यूजेनियो सैंटाना फ्रेंको, एक 64 वर्षीय पूर्व ब्राजीलियन नर्स, जिन्होंने जीवन की कठिनाइयों के बावजुद अपनी अलग पहचान बनाई है। पेरिस 2024 पैरालंपिक्स में पैराआर्चरी में अपनी शुरुआत कर रहे हैं। ये कहानी केवल खेल की नहीं है, बल्कि संघर्ष और दृढ़ता की भी है। यूजेनियो के जीवन में कई सारी परेशानियां थीं। वे अन्काइलोसिंग स्पोंडिलाइटिस, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, पार्किंसन्स और हार्ट एनीउरिज्म जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हो गए थे, फिर भी उन्होंने संघर्ष किया और तीरंदाजी में अपने आपको साबित किया।
प्रेरणा की खोज
एक नर्स के रूप में कार्य करते हुए, यूजेनियो ने अपने मरीजों को प्रेरित करने का काम किया। वे उन मरीजों को तीरंदाजी के वीडियो दिखाते थे जिनका शरीर का कुछ हिस्सा काटना पड़ा था। इन वीडियो में मैट स्टुट्जमैन का विशेष रूप से जिक्र होता था, जो बिना बाहों के तीरंदाजी करते हैं। इन वीडियो ने न केवल मरीजों को बल्कि स्वयं यूजेनियो को भी प्रेरित किया और उन्होंने इस खेल में रुचि लेना शुरू किया।
2014 में तीरंदाजी की शुरुआत
2014 में, यूरोप में रहते हुए यूजेनियो ने इंडोर तीरंदाजी की शुरुआत की। पेरिस में आयोजित आर्चरी वर्ल्ड कप फाइनल देखने के बाद उनका इस खेल के प्रति जुनून और बढ़ गया। उन्होंने ठान लिया कि वे पेरिस में ही इस खेल में हिस्सा लेंगे।
स्वास्थ्य समस्या के बावजूद सकारात्मकता
अपने स्वास्थ्य के लगातार गिरते हुए स्तर के बावजूद यूजेनियो हमेशा सकारात्मक और प्रेरित रहे। उनका मानना है कि तीरंदाजी ने न केवल उनके जीवन को बदल दिया है, बल्कि औरों के जीवन में भी बड़ी प्रेरणा प्रदान की है। उन्होंने साबित कर दिखाया है कि तीरंदाजी एक ऐसा खेल है जिसमें हर उम्र और योग्यता के लोग शामिल हो सकते हैं।
पैरालंपिक्स में यात्रा
हालांकि यूजेनियो ने अपना मुकाबला हार दिया, लेकिन पैरालंपिक्स में भाग लेना उनके लिए गौरव का विषय है। वे अपनी इस यात्रा को जारी रखने के लिए उत्सुक हैं। उनकी कहानी न केवल एक खेल प्रेमी के लिए बल्कि उन सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो जीवन में किसी चुनौती का सामना कर रहे हैं।
Rupesh Sharma - 2 सितंबर 2024
ये कहानी सुनकर लगा जैसे कोई मुझे बता रहा हो कि जिंदगी जीने का मतलब ही ये है कि गिरो तो फिर उठो। मैं भी 50 के बाद से योगा शुरू किया था, तो भी कोई न कोई बाधा आती रहती। पर अगर दिल चाहे तो शरीर भी मान जाता है। यूजेनियो ने साबित कर दिया कि उम्र और बीमारियां इंसान की इच्छाशक्ति के आगे हार मान लेती हैं।
Jaya Bras - 3 सितंबर 2024
अरे ये तो बस एक बुजुर्ग नर्स है जिसने एक खेल सीख लिया और अब इसे फेमस बनाने की कोशिश कर रहा है। क्या ये असली उपलब्धि है या सिर्फ एक ट्रेनिंग वीडियो का रिजल्ट?
Arun Sharma - 4 सितंबर 2024
यहाँ एक अत्यंत गंभीर बात है। यूजेनियो के चिकित्सकीय इतिहास में अन्किलोसिंग स्पोंडिलाइटिस के साथ-साथ पार्किंसन्स और हार्ट एनीयूरिज्म का संयोजन अत्यंत दुर्लभ है। इस स्थिति में तीरंदाजी करना फिजियोलॉजिकल रूप से लगभग असंभव है। इसके लिए एक विशेष रीहैबिलिटेशन प्रोग्राम की आवश्यकता होती है, जिसका उल्लेख नहीं किया गया।
Ravi Kant - 6 सितंबर 2024
भारत में भी कई ऐसे लोग हैं जो बीमारियों के बावजूद अपने सपने पूरे कर रहे हैं। एक दोस्त की बहन जिसके दोनों पैर नहीं हैं, वो बैडमिंटन खेलती है। इंसान की इच्छा शक्ति कभी नहीं मरती। ये कहानी हमें सिखाती है कि बाहरी शर्तें नहीं, अंदर की आत्मा ही असली ताकत है।
Harsha kumar Geddada - 7 सितंबर 2024
देखो ये बात बहुत गहरी है। तीरंदाजी एक ऐसा खेल है जो शारीरिक शक्ति की बजाय मानसिक एकाग्रता पर निर्भर करता है। यूजेनियो ने इसी बात को जीवन भर अपने मरीजों के साथ साझा किया। उनका जीवन एक फिलॉसफिकल प्रैक्टिस बन गया है। जब आप अपने शरीर को बंधन मानते हैं, तो आप उसे जीत नहीं पाते। लेकिन जब आप उसे एक साथी समझते हैं, तो आप उसके साथ चलना सीख जाते हैं। यूजेनियो ने यही किया। वो नहीं लड़े, वो गले लग गए।
sachin gupta - 8 सितंबर 2024
बस एक नर्स ने तीरंदाजी सीख ली और अब वो पैरालंपिक्स में जा रहा है? मतलब अब हर जिसने एक दिन टूर्नामेंट देखा है, वो ऑलिंपिक एथलीट बन सकता है? क्या ये बात अब ट्रेंड में है?
Shivakumar Kumar - 9 सितंबर 2024
दोस्तों, ये आदमी बस तीर चलाने के लिए नहीं जा रहा, वो एक नए तरीके से जीवन को देखने का रास्ता दिखा रहा है। जब तुम एक बूढ़े नर्स को देखो जो अपने बीमार मरीजों को दिखाता है कि बिना बांहों के भी तीर चलाया जा सकता है, तो वो बस एक खेल नहीं, एक नए जीवन का संदेश दे रहा है। ये जो बात है, वो बस एक बुक नहीं, एक जीवन है।
saikiran bandari - 11 सितंबर 2024
तीरंदाजी तो सब करते हैं यार बस ये बुजुर्ग भी कर रहा है और इतना धूम मचा रहा है कि जैसे किसी ने अंतरिक्ष में जाने का फैसला किया हो
Rashmi Naik - 11 सितंबर 2024
इस फ्रेंको के बारे में जो बातें कही जा रही हैं वो असल में एक ट्रांसमॉडल रिहैबिलिटेशन एप्रोच की रिपोर्ट होनी चाहिए ना जिसमें कॉग्निटिव रिसोर्स एलोकेशन और मोटिवेशनल इंटरवेंशन का डेटा हो
Vishakha Shelar - 13 सितंबर 2024
ये तो मेरी नानी भी करती है बस उनका खेल बांग्लादेश के नक्शे पर तीर चलाना है 😭💔
Ayush Sharma - 14 सितंबर 2024
मैंने एक बार एक बुजुर्ग आदमी को देखा था जो अपने घर के बगीचे में लक्ष्य बनाकर तीर चलाता था। वो बहुत शांत था। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। शायद यूजेनियो भी ऐसा ही है।
charan j - 14 सितंबर 2024
कोई नहीं जानता कि ये सब फेक है या नहीं। बस एक बुजुर्ग को फेमस बनाने के लिए बनाई गई कहानी। किसी को फोटो दिखाओ तो पता चल जाएगा
Kotni Sachin - 16 सितंबर 2024
हर इंसान के अंदर एक योद्धा होता है। बस उसे जगाने की जरूरत होती है। यूजेनियो ने अपने मरीजों को जगाया, और फिर खुद को। ये तीरंदाजी नहीं, ये आत्म-जागृति है। और ये बहुत बड़ी बात है।
Nathan Allano - 16 सितंबर 2024
मैं बहुत खुश हूँ कि ये कहानी सामने आई। मैंने अपने दादाजी को भी ऐसे ही देखा है, जो अपनी बीमारियों के बावजूद हर सुबह चाय पीते हुए आसमान की ओर देखते थे। उनका जीवन भी एक शांत लड़ाई थी। यूजेनियो ने उसी लड़ाई को तीरंदाजी के रूप में जी लिया। इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
Guru s20 - 18 सितंबर 2024
मैं भी एक नर्स हूँ। जब मैं अपने मरीजों को इस तरह प्रेरित करूँगा तो शायद उनमें से कोई भी एक दिन पैरालंपिक्स में जाएगा। ये कहानी मुझे बहुत प्रेरित करती है।
Raj Kamal - 19 सितंबर 2024
मैंने सोचा था कि ये बस एक आम कहानी है, लेकिन जब मैंने देखा कि उन्होंने मैट स्टुट्जमैन के वीडियो को अपने मरीजों के लिए इस्तेमाल किया, तो मुझे लगा कि ये बहुत गहरा है। मैट ने बिना बांहों के तीरंदाजी की, और यूजेनियो ने बिना उम्र के जीवन जिया। ये दोनों ने एक ही बात को साबित किया: शरीर नहीं, आत्मा ही असली तीर है।
Rahul Raipurkar - 19 सितंबर 2024
ये सब बहुत अच्छा है, लेकिन क्या ये असली उपलब्धि है या सिर्फ एक बुजुर्ग को बाजार में बेचने के लिए बनाई गई एक नैरेटिव? क्या इसके लिए कोई डॉक्यूमेंटेड रिकॉर्ड है?
PK Bhardwaj - 19 सितंबर 2024
इस यात्रा में एक अहम बात है - यूजेनियो ने अपनी बीमारियों को अपनी पहचान नहीं बनाया, बल्कि उन्हें अपने जीवन का हिस्सा बनाया। ये एक बड़ी बात है। जब आप अपनी कमजोरियों को अपनी पहचान बना लेते हैं, तो आप उनसे लड़ना बंद कर देते हैं। लेकिन जब आप उन्हें अपने साथ चलने देते हैं, तो वो आपको ले जाती हैं।
Rupesh Sharma - 21 सितंबर 2024
हाँ, ये बात बहुत सच है। मैंने अपने दादा को भी ऐसे ही देखा था। वो बीमार थे, लेकिन हर रोज सुबह अपने बगीचे में एक लक्ष्य बनाते और तीर चलाते। उनका बोलना था - तीर चलाना नहीं, लक्ष्य देखना है। यूजेनियो भी वैसा ही है।