13 साल में आम आदमी पार्टी का उतार-चढ़ाव: दो बार जीत, फिर 2025 में हार

13 साल में आम आदमी पार्टी का उतार-चढ़ाव: दो बार जीत, फिर 2025 में हार

जब अरविंद केजरीवाल ने 26 नवम्बर 2012 को दिल्ली के जंतर‑मंतर में आम आदमी पार्टी का पंजीकरण करवाया, तब उनके सामने एक छोटे‑छोटे लक्षण वाले चुनौतियों का पहाड़ था। वही साल, अन्ना हजारे के जन‑लोकपाल आंदोलन के सहयोगी भी इस राजनीतिक प्रयोग में मिले‑जुले थे, और ऐसा लगा जैसे सबका भाग्य एक ही पाठ्यक्रम पर लिखी हुई हो। 13 साल के भीतर पार्टी ने दो बड़े चुनाव जीत कर राज्य‑स्तर पर शासन किया, लेकिन 2025 के चुनाव में अल्प‑मत में धवल रूप से पराजित होने की आशंका अब स्पष्ट हो रही है।

इतिहास और स्थापना

असली कहानी 6 अप्रैल 2011 को शुरू होती है, जब अन्ना हजारे ने जंतर‑मंतर पर जन‑लोकपाल कानून के लिये पहला अनशन किया। उनका विरोधी‑भ्रष्टाचार आंदोलन इंडिया अगेंस्ट करप्शन के नाम से राष्ट्रीय स्तर पर फैल गया, लेकिन उन्होंने आंदोलन को राजनीति से अलग रखने की ठोस पंक्ति बनायी़ रखी। वहीं अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों ने समझा कि बदलती जनता को जमीनी स्तर पर सुनाने के लिये एक वैध राजनीतिक मंच की जरूरत है। इस विचार से ही आम आदमी पार्टी की नींव रखी गई, और 26 नवम्बर 2012 को इसे आधिकारिक रूप से पंजीकृत किया गया।

पहला बड़ा झटका: 2013 राजधानी चुनाव

2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी ने पूरी 70 सीटों पर लड़ाई लड़ते हुए 28 सीटें जीतीं। यह जीत "झाड़ू" चिन्ह के साथ पूरी तरह से आश्चर्यजनक थी, क्योंकि किसी भी स्थापित दल ने पहले ऐसा नहीं किया था। कांग्रेस का बाहरी समर्थन मिलने से केजरीवाल ने 28 दिसंबर 2013 को दिल्ली के सातवें मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन केवल 49 दिनों बाद, 14 फ़रवरी 2014 को जन‑लोकपाल विधेयक को अस्वीकार करने के कारण सरकार को इस्तीफा देना पड़ा।

राजनीतिक परिपक्वता: 2015 की ऐतिहासिक जीत

2015 दिल्ली विधानसभा चुनाव ने पार्टी को वास्तव में राष्ट्रीय मंच पर धूम मचा दी। 70 में से 67 सीटें जीतकर यह बहु‑पक्षीय राजनीति में अजेय दिखी। प्रारम्भ में ही केजरीवाल ने बिजली‑पानी मुफ्त की घोषणा की, स्लम क्षेत्रों में मुफ्त स्वास्थ्य केन्द्र स्थापित किए, और कई मौद्रिक लाभ योजनाएँ लागू कीं। यही समय था जब पार्टी के भीतर तनाव सतह पर आया; प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने केजरीवाल पर "सुप्रीम लीडर" का आरोप लगाया, जिससे एक बड़े प्रस्थान की लहर शुरू हुई। 2017 में दो संस्थापक सदस्य स्वराज अभियान की ओर चले गए, जबकि आशुतोष और 2023 में आशीष खेतान ने भी पार्टी छोड़ दी। कुल मिलाकर, छह वर्षों में 13 करीबी नेता पार्टी से बाहर हो गये।

राष्ट्रीय विस्तार और नया अधिग्रहण

दिल्ली के बाद, पार्टी ने पंजाब में सरकार बनाकर अपना दायरा बढ़ाया। पंजाब सरकार में केजरीवाल का प्रत्यक्ष प्रभाव अब तक दिखाई नहीं देता, पर पार्टी ने वही मॉडल लागू करने की कोशिश की। 2018 में गोवा और 2022 में गुजरात में भी पार्टी ने अपनी इकाइयाँ स्थापित कीं, और 2024 तक कुल 161 विधायक, कई एमसीडी सदस्य, और राज्यसभा में चौथे क्रमांक की सीटों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रमुख शक्ति बन गई। 20 मई 2013 को शिकागो में हुए अमेरिकी भारतीय कांग्रेस में भी दो AAP प्रतिनिधि, कुमार विश्वास और योगेंद्र यादव ने हिस्सा लिया, जिससे अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी मिला।

भविष्य की चुनौतियाँ और 2025 का संकेत

हालांकि पार्टी ने तेजी से विस्तार किया है, लेकिन भीतर‑बाहर दोनों तरफ से बढ़ते दबाव स्पष्ट हो रहे हैं। 2025 के संभावित चुनाव में अल्प‑मत संकेतों ने अराजकता की हवा लेकर आई है। कई विश्लेषकों का मानना है कि नेता‑प्रेम पर बहुत अधिक निर्भरता, लगातार आन्तरिक संघर्ष, और नई पीढ़ी के मतदाताओं के बदलते मुद्दे पार्टी की जड़ को कमजोर कर रहे हैं। जैस्मीन शाह की पुस्तक "केजरीवाल मॉडल" में बताया गया है कि अब पार्टी को केवल नीति‑निर्माण नहीं, बल्कि संचार‑रणनीति, युवा सहभागिता, और आर्थिक स्थिरता पर भी फोकस करना होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो भविष्य की चुनावी सफलता में दुरुपयोगी कमियां दिखने लगेंगी।

निष्कर्ष

13 साल में आम आदमी पार्टी ने छोटे आंदोलन से राष्ट्रीय मंच तक का सफर तय किया, दो बार सरकार बनाकर लोगों के दिलों में जगह बनाई, परन्तु लगातार हिलते-डुलते आन्तरिक ढाँचे ने अब उसे अस्थिर कर दिया है। 2025 का संभावित हार इस बात की इशारा करता है कि जनता अब केवल बड़प्पन नहीं, बल्कि स्थायी विकास, पारदर्शिता और सच्ची जवाबदेही की माँग कर रही है। पार्टी के भविष्य की दिशा इस बात पर निर्भर करेगी कि वह इन चुनौतियों को कैसे संभालती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

आम आदमी पार्टी की 2025 की संभावित हार का मुख्य कारण क्या है?

विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार नेता‑प्रेम पर निर्भरता, आन्तरिक संघर्ष और नई पीढ़ी के मतदाताओं के मुद्दों को न समझ पाना ही मुख्य कारण है। साथ ही, पार्टी की नीतियों का स्थायित्व और आर्थिक दबाव भी महत्त्वपूर्ण कारक बन कर उभरे हैं।

पंजाब सरकार में आम आदमी पार्टी ने किन सफल कार्यों को लागू किया?

पंजाब में जल‑संचयन, मुफ्त स्वास्थ्य जांच और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता योजनाएँ प्रमुख रहे हैं। इन प्रयासों ने राज्य के गरीब वर्ग में पार्टी की लोकप्रियता को बढ़ाया।

अन्ना हजारे का जन‑लोकपाल आंदोलन आज भी पार्टी को कैसे प्रभावित करता है?

हजारे का भ्रष्टाचार‑विरोधी प्रवाह पार्टी की मूल विचारधारा में बना रहता है। हालांकि उनके अलगाव की इच्छा ने पार्टी को वैध राजनीति में प्रवेश करने के लिये मजबूर किया, जिससे केजरीवाल का नेतृत्व उभरा।

जैस्मीन शाह की "केजरीवाल मॉडल" पुस्तक का मुख्य संदेश क्या है?

पुस्तक में बताया गया है कि पार्टी को अब केवल नीतियों तक सीमित नहीं रहना चाहिए; उसे संचार‑रणनीति, युवा सहभागिता और आर्थिक स्थिरता पर भी ध्यान देना होगा। यह मॉडल भविष्य में चुनावी सफलता की कुंजी प्रस्तुत करता है।

भविष्य में पार्टी के लिए कौन‑से प्रमुख कदम आवश्यक हैं?

आन्तरिक एकता को सुदृढ़ करना, नई नीतियों को स्थानीय स्तर पर त्वरित कार्यान्वयन, और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर युवा मतदाता वर्ग को जोड़ना प्रमुख कदम माने जा रहे हैं। इन रणनीतियों से ही पार्टी को 2025 के बाद की राह आसान होगी।

Shifa khatun

लेखक के बारे में

Shifa khatun

मैं एक स्वतंत्र पत्रकार हूँ जो भारत में दैनिक समाचारों के बारे में लिखती हूँ। मुझे लेखन और रिपोर्टिंग में गहरी रुचि है। मेरा उद्देश लोगों तक सटीक और महत्वपूर्ण जानकारी पहुँचाना है। मैंने कई प्रमुख समाचार पत्रों और वेबसाइट्स के लिए काम किया है।

टिप्पणि (4)

  1. Harman Vartej

    Harman Vartej - 10 अक्तूबर 2025

    AAP ने दिल्ली में शिक्षा सुधार पर ध्यान दिया
    बिना ज्यादा झंझट के नई स्कूलों में मुफ्त पुस्तकें प्रदान की

  2. Amar Rams

    Amar Rams - 21 अक्तूबर 2025

    सिस्टमेटिक पॉलिसी इंटीग्रेशन के माध्यम से AAP ने अवसंरचनात्मक नियोजन को पुनः परिभाषित किया। इस रणनीतिक पुनर्संरचना ने शहरी गवर्नेंस के मैक्रो‑लेवल प्रभाव को स्पष्ट किया। परिणामस्वरूप, वित्तीय एलोकेशन में पारदर्शिता का नया मानक स्थापित हुआ।

  3. Rahul Sarker

    Rahul Sarker - 1 नवंबर 2025

    देश की राजनीति में विदेशी एजेंडा को बायपास करना चाहिए
    AAP का भ्रष्टाचार विरोधी रुख राष्ट्रीय गरिमा का प्रतीक है
    यदि इस भावना को कमजोर किया गया तो पूरे लोकतंत्र को हानि होगी
    हमारी सोवियत तुलना में ये कदम अद्वितीय साहस दिखाते हैं

  4. Sridhar Ilango

    Sridhar Ilango - 12 नवंबर 2025

    सच बताऊँ तो AAP का सफ़र बड़ा ही रोलरकोस्टर जैसा रहा है
    एक तरफ़ आधी रज्‍वानी में जनता की उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश में ऊँचे‑ऊँचे बड्‍के वादे किये गये
    पर दूसरी तरफ़ इन वादों के पीछे अक्सर निहित पार्टी इंट्रांसिक टकराव दिखे
    लगता है जैसे हर मीटिंग में एग्जीक्यूटिव्स की स्कीम्स का बॉल पास चल रहा हो
    पीछे हटते‑हटते जब रैली में बॉयलॉंगिंग शुरु हुई तो सबको लगा कि AAP अब ट्रांसफ़ॉर्म किया जाएगा
    पर असल में वही पुरानी दाल‑चिन्या फिर से पंधरावन में दोबारा उबकी लायगी
    बिल्कुल भी नहीं समझ में आता कि इस अराजकता के बीच में कौन‑सी पॉलिसी सॉफ़्टवेअर रन कर रहा है
    जैसे कि कोड में गड्ढे हो और फिर भी रिएक्शन इफेक्टिव है
    यही समझ नहीं आ रहा कि AAP क्यों अंततः वही पुराना सर्कल फॉलो कर रहा है

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